Director Sidharth Nagar’s New Venture – Dhappa

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इस फिल्म के माध्यम से हम कहना चाहते हैं कि आज यूपी के युवाओं को तमंचों की नहीं, कलम की जरूरत है। वे पढ़ने लिखने की बजाय अपने हाथ में तमंचे ले लेते हैं लेकिन इसका अंत धप्पा के रूप में होता है यानी अंत में उन्हें पुलिस की गोली लगती है। आईस पाईस का अंत भी धप्पा के रूप में ही होता है इसलिए हमने इस फिल्म की कहानी को प्राचीन खेल से जोड़कर मैसेज देने की कोशिश की है। सिद्धार्थ कहते हैं कि इस फिल्म के लिए यूपी की लोकेशन को इसलिए चुना गया क्योंकि इसकी कहानी ही यूपी बेस्ड है जहां पढ़ाई से ज्याद तमंचों का जोर रहा है। आज हालात भले ही काबू में हैं लेकिन एक दौर ऐसा भी था, जब तमंचों की दहशत थी। युवक बहुत जल्दी भ्रमित हो जाया करते थे और अपराध के रास्ते पर निकल पड़ते थे। हमने उसी दौर को दिखाने की कोशिश की है कि अब वक्त बदल चुका है। तमंचों की नहीं, अब कलम की ताकत चलती है। यूपी सरकार फिल्मों को कितना मदद दे रही है? इस सवाल पर सिद्धार्थ कहते हैं कि मैं तो यही कहूंगा कि यूपी की किसी एक सरकार ने नहीं, बल्कि तमाम सरकारों ने फिल्म की नीति को आगे बढ़ाने की कोशिश की है। हर सरकार का यह प्रयास रहा है कि फिल्मों को राज्य में ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहन मिले। आज स्थिति ये है कि बड़ी से बड़ी फिल्मों की शूटिंग यूपी में हो रही है। —अनिल बेदाग—]]>

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